लालू यादव के गढ़ सारण में इस बार बदल जाएंगे सियासी समीकरण, क्या राजीव प्रताप रूडी से नाराज हैं मोदी-शाह?

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अक्षय सिंह

लोकनायक जय प्रकाश नारायण की जन्मभूमि सारण का राजनीतिक इतिहास बहुत समृद्ध रहा है। गंगा, सरयू और सोन नदी के संगम तट पर स्थित इस जिले की राजनीतिक लड़ाई हमेशा से बेहद दिलचस्प रही है। वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी यहां से सांसद हैं। हालांकि आपातकाल के बाद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव जब तक चुनावी राजनीति में थे, इस सीट पर उनका दबदबा था। चारा घोटाला में सजा होने के बाद सांसदी गई तो अपने परिवार के लोगों पर भरोसा किया लेकिन अपनी इस परंपरागत सीट को बचाने में कामयाब नहीं रहें। सारण लोकसभा क्षेत्र में कुल 6 विधानसभा की सीटें हैं – मढ़ौरा, गरखा, परसा, सोनपुर, परसा, छपरा और अमनौर। इनमें चार राजद (गरखा, सोनपुर, मढ़ौरा और सोनपुर) के पास है तो वहीं दो (छपरा और अमनौर) सीट पर बीजेपी का कब्जा है। मढ़ौरा और गरखा के राजद विधायक राज्य सरकार में मंत्री भी हैं।

आजादी से अब तक कैसी रही है क्षेत्र की चुनावी यात्रा?

वैसे तो पहले इस लोकसभा क्षेत्र को छपरा संसदीय सीट के नाम से जाना जाता था लेकिन 2008 में परिसीमन के बाद नाम बदलकर सारण लोकसभा कर दिया गया। 1952 में पहली लोकसभा चुनाव के दौरान सारण सेंट्रल और सारण ईस्ट नाम से दो सीटें हुआ करती थी। तब महेंद्रनाथ सिंह और सत्य नारायण सिन्हा कांग्रेस पार्टी से जीतकर संसद पहुंचे थे। 1957 के दूसरे लोकसभा चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के राजेन्द्र सिंह ने जीत दर्ज की, लेकिन इसके बाद फिर कांग्रेस पार्टी की वापसी हुई और लगातार तीन बार रामशेखर प्रसाद सिंह चुनाव जीतने में कामयाब रहें। 1977 में हुए चुनाव में आपातकाल के बाद कांग्रेस पार्टी को लेकर देशभर की जनता में आक्रोश था, जिसका खामियाजा रामशेखर प्रसाद सिंह को भुगतना पड़ा और उनके वर्चस्व को उस वक्त के युवा नेता लालू यादव ने खत्म किया। यही साल था जब लालू यादव पहली बार सिर्फ 29 साल की उम्र में छपरा से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे।

हालांकि 1980 में जनता पार्टी के सत्यदेव सिंह से और 1984 के चुनाव में राम बहादुर से लालू यादव को हार का सामना करना पड़ा था। फिर 1989 में लालू यादव की छपरा सीट से संसद में वापसी हुई, लेकिन 1990 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें ये सीट छोड़नी पड़ी। इसके बाद जनता दल के लालबाबू राय सांसद चुने गए। बीच में 1998 में हीरालाल राय को छोड़ दें तो बाकी समय लालू यादव और राजीव प्रताप रूडी ही इस सीट से निर्वाचित होते रहे हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का इस क्षेत्र में रहा है दबदबा

लालू यादव का गृह जिला गोपालगंज सारण प्रमंडल में ही आता है, जो पहले सारण जिले का ही हिस्सा था। चुनावी राजनीति में लालू यादव ने छपरा को अपना ठिकाना बनाया। यहां की जनता ने भी उन पर खूब भरोसा किया। लोकसभा चुनावों में जीतते रहने के साथ ही इसी लोकसभा क्षेत्र में आने वाले सोनपुर विधानसभा सीट से वह विधायक भी बनें। लालू यादव यहां से चार बार सांसद चुने गए। इस सीट से सांसद रहने के दौरान ही UPA-1 में वे रेलमंत्री भी बने। मंत्री रहने के दौरान डीज़ल रेल इंजन कारखाना के साथ कई सौगातें क्षेत्र की जनता को दिया। 2004 और 2009 में भाजपा के राजीव प्रताप रूडी को हराकर संसद तो पहुंचे लेकिन 2013 में चारा घोटाले में सजायाफ्ता होने के बाद संसद की सदस्यता चली गई। साथ ही चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गया। बाद में 2014 में पत्नी राबड़ी देवी को मैदान में उतारा लेकिन नरेंद्र मोदी की लहर में सफलता नहीं मिली। 2019 लोकसभा चुनाव में एक बार फिर लालू परिवार से ही उनके समधी चंद्रिका राय को टिकट मिला लेकिन वो भी नहीं जीत सके। दोनों बार भाजपा के राजीव प्रताप रूडी ने जीत हासिल की।

जाने क्या है इलाके का जातीय समीकरण?

चुनाव आयोग के मुताबिक़ यहां कुल वोटर क़रीब 13 लाख है। इस सीट पर राजपूत और यादव जाति के लोगों की संख्या सबसे अधिक है। यही कारण है कि अब तक इन्हीं दो जातियों के नेता चुनकर संसद पहुंचते रहे हैं। राजनीतिक पार्टियां भी इसी बिरादरी के नेता को अपना उम्मीदवार बनाती है। इलाके के राजनीतिक जानकारों के मुताबिक इस सीट पर करीब 28% यादव-मुस्लिम वोटर हैं जो राजद के परंपरागत वोट माने जाते हैं। वहीं 30% के आसपास सवर्ण और वैश्य मतदाता हैं, इस वर्ग का बीजेपी के तरफ रुझान देखने को मिलता है। दैनिक भास्कर से जुड़े जिले के एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि सवर्ण और वैश्य समुदाय का बीजेपी के पक्ष में एकतरफ़ा वोट पड़ता है, ठीक यही स्थिति यादव और मुसलमानों को लेकर राजद के लिए है। सबसे अधिक मायने गठबंधन रखता है। चूंकि अब लालू यादव खुद चुनाव नहीं लड़ सकते। जनता के बीच उनका एक अलग प्रभाव था। यही कारण है कि वर्तमान सांसद रूडी कभी लालू यादव को नहीं हरा पाए। 2014 में बीजेपी, राजद और जदयू तीनों पार्टी से प्रत्याशी मैदान में थे। इस चुनाव में रूडी ने राबड़ी देवी को करीब चालीस हजार मतों से हराया था। जदयू उम्मीदवार सलीम परवेज को एक लाख से अधिक वोट मिले थे। हालांकि पूरे देश में मोदी लहर का फायदा राजीव प्रताप रूडी को भी मिला था। लेकिन बात 2019 की करें तो जब बीजेपी और जदयू साथ ही गई तो जीत का फासला करीब 1 लाख 40 हजार हो गया। रूडी को 52 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। इसी के साथ ही रूडी चौथी बार बड़ी जीत हासिल कर लालू यादव की बराबरी कर सके।

2024 में राजद और भाजपा से कौन हो सकता है उम्मीदवार?

वर्तमान सांसद रूडी बीते दिनों पार्टी के समानांतर ‘विजन बिहार एजेंडा 2025’ अभियान चला रहे थे। ये उनका व्यक्तिगत कार्यक्रम था, जिसके माध्यम से विभिन्न जिलों में जाकर अपनी बात रख रहे थे। इसको लेकर कहा गया कि रूडी पार्टी लाइन से हटकर काम कर रहे हैं। राजनीतिक हलकों में एक चर्चा ये भी है कि अगले चुनाव में उन्हें टिकट न मिले। टिकट काटे जाने के सवाल पर रूडी ने पत्रकारों से कहा था कि प्रत्येक चुनाव से पहले मीडिया द्वारा मेरा टिकट काटा जाता है, मैं इस अभियान से पार्टी की विचारधारा को ही आगे बढ़ाने का काम कर रहा हूं। हालांकि यह चर्चा ज़रूर है कि राजीव प्रताप रूडी से भाजपा केंद्रीय नेतृत्व नाराज है। फिर भी अगर पार्टी दूसरे नाम पर विचार करती भी है तो बीजेपी में कोई बड़ा क्षेत्रीय नेता नजर नहीं आता है। भाजपा से टिकट काटे जाने के बाद निर्दलीय चुनाव जीतने वाले MLC सच्चिदानंद राय को लेकर पहले चर्चा थी कि वे भाजपा से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन वे इन दिनों प्रशांत किशोर के जन सुराज अभियान से जुड़े हैं। लोगों के बीच एक चर्चा यह भी है कि राजीव प्रताप रूडी के टिकट कटने की स्थिति में भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह को सारण से भाजपा लड़ा सकती है। गौरतलब है कि पवन सिंह कई सार्वजनिक मंचों से घोषणा कर चुके हैं कि इस बार चुनाव लड़ना चाहते हैं। लेकिन आरा के वर्तमान सांसद और केंद्रीय मंत्री आरके सिंह का टिकट काटना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। इसलिए पार्टी पड़ोस की सीट सारण से भी मैदान में उतार सकती है। बता दें कि पवन सिंह पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के स्टार प्रचारक भी थे। 

वहीं राजद की तरफ से देखे तो लालू परिवार के करीबी विधान पार्षद सुनील सिंह के चुनाव लड़ने की चर्चा जोरों पर है। हालांकि सीएम नीतीश कुमार के विरोध में लगातार बोलते रहने के कारण राजद उन्हें प्रत्याशी बनाकर नीतीश के नाराज होने का रिस्क नहीं लेना चाहेगी। कुछ समय पहले सहकारिता से जुड़े एक कार्यक्रम में सुनील सिंह की गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात हुई थी। इसके बाद नीतीश कुमार नाराज़ बताए जा रहे थे और उन्होंने यहां तक कह दिया था कि सुनील सिंह भाजपा से चुनाव लड़ना चाहते हैं। इस सीट से बिहार सरकार में मंत्री और राजद विधायक जितेन्द्र राय भी टिकट के प्रयास में हैं। वे मढ़ौरा विधानसभा से लगातार तीन बार से विधायक हैं। लेकिन ऐसी संभावना कम है कि राजद लालू परिवार को छोड़ किसी दूसरे को उम्मीदवार बनाए। पार्टी लालू यादव की बेटी मीसा भारती को भी प्रत्याशी बना सकती है, क्योंकि पाटलीपुत्र से लगातार रामकृपाल यादव से मीसा चुनाव हार रही हैं। इस बार सारण सीट से किस्मत आज़मा सकती हैं। साथ ही परिवार से उम्मीदवार देने की स्थिति में तेज प्रताप यादव के भी लड़ने की चर्चा है। पिछले लोकसभा चुनाव में तेज प्रताप अपने समधी के विरोध में लड़ने का मन बना रहे थे। उन्होंने खुलकर चंद्रिका राय को वोट न देने की भी अपील की थी। दोनों गठबंधन चाहे जिस उम्मीदवार को टिकट दे, लेकिन असली परीक्षा तो जनता के सामने ही देना होगा।

 

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