ओम प्रकाश
बिहार के 40 लोकसभा सीटों में क्रमानुसार पहले स्थान पर आने वाली सीट का नाम है वाल्मीकि नगर। नक्शे में बिहार के दक्षिण-पूर्वी कोने में स्थिति ये लोकसभा सीट पश्चिम चंपारण जिले का हिस्सा है। इस सीट की सीमाएं नेपाल और उत्तर प्रदेश से लगती हैं। परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद वाल्मीकि नगर लोकसभा 2008 में अस्तित्व में आया और यहां पहला चुनाव 2009 में हुआ। इसके पहले इस सीट को बगहा लोकसभा के नाम से जाना जाता था। बिहार का एकलौता टाइगर रिजर्व इसी इलाके में है, जिसे संक्षिप्त में VTR कहते हैं यानी वाल्मीकि टाइगर रिजर्व। अधिक क्षेत्रफल और कम जनसंख्या वाले इस क्षेत्र में सामान्य तौर पर ज्यादा हरियाली नजर आती है। शायद इसलिए भी ये बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राज्य में ये दूसरा सबसे पसंदीदा ठिकाना है। राजगीर के बाद वे अक्सर यहीं आते हैं और अपनी कई राजनीतिक यात्राओं की शुरुआत भी उन्होंने यहीं से की है।
आजादी के बाद से अब तक का, क्या रहा है चुनावी इतिहास?
वर्तमान की वाल्मीकि नगर लोकसभा सीट 2008 से पहले बगहा लोकसभा सीट के नाम से जानी जाती थी और यह सीट अनुसूचित जाति (SC) कोटे के लिए आरक्षित थी। आजादी के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में भोला राउत को इस सीट से पहला सांसद बनने का सौभाग्य मिला। उन्होंने लगातार 1977 तक इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में पहली बार इस सीट पर गैर-कांग्रेसी सांसद ने जीत दर्ज की। जनता पार्टी के उम्मीदवार जगन्नाथ प्रसाद स्वतंत्र ने कांग्रेस के भोला राउत को हरा दिया। हालांकि जनता पार्टी की सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और देश में 1980 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए। देश के साथ ही इस सीट पर भी कांग्रेस ने वापसी की। भोला राउत फिर से लोकसभा पहुंचे और 1989 तक यहां से सांसद रहे। 1989 तक देश की राजनीतिक फिजा बदल चुकी थी और एक बार फिर से कांग्रेस विरोधी लहर चल पड़ी थी। बोफोर्स के मामले और मंडल की राजनीति ने समाजवादियों में नई जान फूंक दी थी। इस दौरान 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां से जनता दल के टिकट पर महेंद्र बैठा लोकसभा पहुंचे और लगातार तीन बार सांसद बने। दूसरी बार वे समता पार्टी के टिकट पर और तीसरी बार जनता दल (यूनाइटेड) के टिकट पर संसद पहुंचे। 2004 में जदयू ने महेंद्र बैठा के बेटे कैलाश बैठा को टिकट दिया और वे भी इस सीट पर चुनाव जीतने में सफल रहे।
परिसीमन के बाद बगहा लोकसभा सीट का नाम बदलकर वाल्मीकि नगर लोकसभा हो गया और ये सीट आरक्षित कोटे से सामान्य श्रेणी में आ गई। 2009 में हुए पहले चुनाव में वाल्मीकि नगर सीट पर एनडीए गठबंधन की ओर से जदयू के वैद्यनाथ महतो ने जीत हासिल की। उन्होंने तब राजद के कद्दावर नेता रघुनाथ झा को चौथे स्थान पर पहुंचा दिया था। दूसरे नंबर पर निर्दलीय फखरुद्दीन और तीसरे स्थान पर बसपा के मनन मिश्र रहे थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ी और इस सीट को भाजपा के सतीश चन्द्र दुबे के हाथों गंवा दिया। दूसरे स्थान पर कांग्रेस के पूर्णमासी राम रहे। हालांकि 2019 में इस सीट पर जदयू की किस्मत एक बार फिर से चमकी और एनडीए गठबंधन की तरफ से जदयू उम्मीदार वैद्यनाथ महतो रिकॉर्ड मतों से जीतकर फिर से लोकसभा पहुंचे। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस उम्मीदवार शाश्वत केदार को 3 लाख से अधिक वोटों से हराया। लेकिन 2020 में वैद्यनाथ महतो का निधन हो गया और इस सीट पर उप-चुनाव हुए। जदयू ने उनके बेटे सुनील कुमार को टिकट दिया। सुनील कुमार चुनाव जीतने में तो सफल रहे लेकिन जीत का अंतर सिर्फ 22 हजार रह गया। कांग्रेस के प्रवेश मिश्रा दूसरे स्थान पर रहे और भारतीय पंचायत पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले शैलेंद्र कुमार तीसरे स्थान पर रहे।
वाल्मीकि नगर सीट का पूरा जातीय समीकरण समझिए
वाल्मीकि नगर लोकसभा सीट 6 विधानसभा सीटों से मिलकर बनी है। इसके अंदर वाल्मीकि नगर, रामनगर (एससी), नरकटियागंज, बगहा, लौरिया और सिकटा विधानसभा सीटें आती हैं। इस सीट पर सबसे अधिक जनसंख्या ब्राह्मण मतदाताओं की है। यहां 2 लाख 15 हजार के करीब ब्राह्मण मतदाता हैं। दूसरे नंबर पर थारू समुदाय के लोग हैं। इनकी संख्या करीब 2 लाख के आसपास है। इस सीट पर मुसलमानों की आबादी भी लगभग थारू समुदाय के बराबर ही है। इसके बाद करीब सवा लाख की आबादी कुशवाहा समाज के लोगों की है और तकरीबन एक लाख यादव वोटरों की जनसंख्या है। चुनावी तौर पर इन जातियों के बीच ही इस सीट की राजनीति घूमती है और पार्टियां भी इन्हीं जाति समूह के लोगों पर अपना दांव लगाती है।
चौक-चौराहों पर किस पार्टी से कौन लड़ रहा है चुनाव?
वाल्मीकि नगर सीट पर 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए गुणा-भाग शुरू हो चुका है। इलाके के चौक-चौराहों से लेकर पटना-दिल्ली तक लोग टिकट काट और बांट रहे हैं। महागठबंधन की ओर से कांग्रेस और जदयू दोनों इस सीट पर अपनी दावेदारी ठोक रही है। जदयू की ये सिटिंग सीट है इसलिए उसका पलड़ा भारी है। लेकिन क्या सुनील कुमार को ही जदयू का टिकट मिलेगा इस बात पर आशंका जाहिर की जा रही है, क्योंकि पिछली बार जीत का अंतर सिर्फ 22 हजार था। कांग्रेस की तरफ से प्रवेश मिश्रा और शाश्वत केदार टिकट के लिए दिल्ली दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं। जानकारों की माने तो एनडीए की ओर से लगभग तय है कि भाजपा इस सीट से चुनाव लड़ेगी। लेकिन पेंच वहां भी है, क्योंकि सतीश चन्द्र दुबे राज्यसभा जा चुके हैं। पार्टी शायद ही उन्हें उम्मीदवार बनाए, क्योंकि राज्यसभा सीट का नुकसान होने का डर है। एक नाम जो भाजपा की तरफ से चर्चा में है, वो ए पी पाठक का है। पाठक NHAI में संयुक्त सचिव के पद से सेवानिवृत हैं और भाजपा में सक्रिय हैं। इसके अलावा 2020 लोकसभा उप-चुनाव में तीसरे स्थान पर रहने वाले शैलेंद्र कुमार ने हाल ही में भाजपा की सदस्यता ले ली है। कुछ ही दिन पहले तक वो प्रशांत किशोर के जन सुराज अभियान से जुड़े हुए थे।
प्रभात खबर से जुड़े एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि अगर महागठबंधन की ओर से कांग्रेस यहां ब्राह्मण उम्मीदवार देती है तो ये देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा किसे अपना उम्मदीवार बनाती है। एनडीए के घटक दल लोजपा (रामविलास) की ओर से भी बाहुबली नेता राजू तिवारी का नाम स्थानीय स्तर पर उछाला जाता रहा है। 2014 में कांग्रेस के टिकट पर दूसरा स्थान प्राप्त करने वाले पूर्णमासी राम इन दिनों प्रशांत किशोर के जन सुराज अभियान से जुड़े हुए हैं। वे पांच बार विधायक और एक बार गोपालगंज सीट से सांसद भी रह चुके हैं। 2024 में भी उनके चुनाव लड़ने की चर्चा है, लेकिन वो सीट गोपालगंज होगी या वाल्मीकि नगर इस बारे में अभी कोई स्पष्टता नहीं है। अगर वे चुनावी मैदान में उतरते हैं तो यहां की लड़ाई को दिलचस्प बना सकते हैं। हालांकि जीतेगा कौन ये तो वाल्मीकि नगर की जनता ही तय करेगी।
इस आर्टिकल के लेखक ओम प्रकाश सामाजिक और राजनीतिक समीक्षक हैं। वे पत्रकारिता और कानून के विद्यार्थी हैं और बिहार की राजनीति में गहरी रुचि रखते हैं।